Uttrakhand Diary

Uttarakhand and Bagpiper (Mashqabin) Instrument: History, Culture and Modern Connections

उत्तराखंड और बैगपाइपर (मश्कबीन) वाद्य यंत्र: इतिहास, संस्कृति और आधुनिक संबंध

भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां हर क्षेत्र की अपनी अलग-अलग सांस्कृतिक वास्तुकला और संगीत परंपरा है। उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ भी कहा जाता है, वह अपनी लोकसंस्कृति, नृत्य और वाद्य यंत्रों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन पिछले कई वर्षों में एक विदेशी वाद्ययंत्र बैगपाइपर (Bagpiper) ने भी उत्तराखंड की आधुनिक सांस्कृतिक छवि को स्थान दिया है।

बैगपाइपर वाद्य यंत्र (Bagpiper) का मूल रूप से संबंध स्कॉटलैंड (Scotland) से माना जाता है, लेकिन यह वाद्य यंत्र भारत के कई सिद्धांतों, असंबद्ध सेना और पारंपरिक परंपराओं में भी लोकप्रिय हो गया है। अब उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में भी इसका उपयोग देखने को मिलता है, लेकिन इसका सीधा पारंपरिक संबंध उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के इतिहास से नहीं है।

बैगपाइपर वाद्य यंत्र क्या है?

बैगपाइपर एक फूकने वाला वाद्य यंत्र है, जो मुख्य रूप से स्कॉटलैंड, आयरलैंड और ब्रिटिश आर्मी से जुड़ा हुआ है। इसमें एक “बैग” होता है जिसमें हवा भरकर, विभिन्न पाइपों के माध्यम से संगीत उत्पन्न किया जाता है।बैगपाइपर का प्रयोग परेड, सैन्य बैंड और सांस्कृतिक समारोहों में किया जाता है।

बैगपाइपर का इतिहास:

स्कॉटलैंड का राष्ट्रीय वाद्य यंत्र, जिसकी उत्पत्ति स्कॉटलैंड में हुई है और वहीं से फैला है। बैगपाइप एक प्राचीन वाद्य यंत्र है, माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति मध्य पूर्व में हुई थी और बाद में प्रारंभिक सभ्यताओं के उदय के साथ-साथ यूरोप में इसका विकास हुआ। “ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ म्यूज़िक” में सबसे पहले ज्ञात बैगपाइप का उल्लेख है, जो एक नक्काशीदार संस्करण है जो 1,000 ईसा पूर्व का है। बैगपाइप का उल्लेख बाइबिल में भी किया गया है, विशेष रूप से उत्पत्ति और डैनियल के तीसरे अध्याय में, जहाँ नबूकदनेस्सर के समूह में “सिम्फ़ोनिया” शब्द बैगपाइप को संदर्भित करता है। संगीत के ऐतिहासिक विवरण बताते हैं कि इस संदर्भ में, पाइपर्स को पर्क्यूशन इंस्ट्रूमेंट्स के अधीनस्थ भूमिका निभानी पड़ती थी। इन पाइपों के शुरुआती संस्करणों का निर्माण प्राकृतिक सामग्रियों जैसे खोखले नरकट, मकई के डंठल, बांस और इसी तरह के पदार्थों से किया गया था।

उत्तराखंड से बैगपाइपर का संबंध:

1. सैन्य परम्परा से परम्परा:

2. शादियों और जुलूसों में लोकप्रियता:

उत्तराखंड की पारंपरिक वाद्य परंपरा में बाग पाइपर का स्थान:

उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्र जैसे –
ढोल, दमाऊ, रणसिंघा, हुरका, तुरही, भंका आदि लोक संगीत का हिस्सा रहे हैं।
इनका प्रयोग जागर, पांडव नृत्य, छोलिया और अन्य लोक नृत्यों में होता है।

बैग पाइपर का उपयोग नहीं किया गया है, बल्कि यह एक आधुनिक, प्रतिष्ठित वाद्य यंत्र है जो आज की पीढ़ी में लोकप्रिय हो रहा है।

Uttarakhand and Bagpiper (Mashqabin) Instrument: History, Culture and Modern Connections

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) – बगपाइपर वाद्य यंत्र और उत्तराखंड:

बैगपाइपर वाद्य यंत्र क्या है?

बैगपाइपर एक फुकने वाला पारंपरिक वाद्य यंत्र है जिसमें एक बैग (थाली) और कई पाइप होते हैं। इसका उपयोग हवा तरंग संगीत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। यह स्कॉटलैंड और ब्रिटिश सेना में विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

क्या बैगपाइपर वाद्य यंत्र उत्तराखंड का पारंपरिक वाद्य है?

नहीं, बगपाइपर उत्तराखंड का पारंपरिक वाद्य यंत्र नहीं है। यह राज्य की परंपरागत लोकसंगीत परंपरा का हिस्सा नहीं रहा है, लेकिन सेना और आधुनिक आयोजनों के कारण इसका प्रचलन बढ़ा है।

उत्तराखंड में बैगपाइपर का उपयोग कहाँ-कहाँ होता है?

बैगपाइपर का उपयोग उत्तराखंड में मुख्य रूप से सेना से जुड़े समारोहों, शादियों, स्वागत जुलूसों और बैंड पार्टियों में होता है।

उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्र कौन-कौन से हैं?

उत्तराखंड के प्रमुख पारंपरिक वाद्य यंत्र हैं:
ढोल, दमाऊ, रणसिंघा, भंका, तुरही, हुरका, मुरली (बाँसुरी) आदि।

बैगपाइपर को भारत में और किस नाम से जाना जाता है?

भारत में बैगपाइपर को “मश्कबीन” या “मश्कबीन वाद्य यंत्र” के नाम से भी जाना जाता है। “मश्क” यानी थैली और “बीन” यानी पाइप – ये दोनों मिलकर इस वाद्य की बनावट को दर्शाते हैं।

क्या बैगपाइपर भारतीय सेना का हिस्सा है?

हाँ, बैगपाइपर भारतीय सेना की बैंड परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सेना की परेड, पासिंग आउट परेड, और राष्ट्रीय समारोहों में इसका प्रयोग होता है।

क्या बैगपाइपर सीखना कठिन है?

हाँ, बैगपाइपर सीखना शुरुआती दौर में कठिन हो सकता है क्योंकि इसमें साँस की क्षमता, उंगलियों का समन्वय और तालमेल की आवश्यकता होती है। लेकिन नियमित अभ्यास से इसे सीखा जा सकता है।



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